Featuring Rupesh Gupta || एक उदास बच्चे के खुद से किये गए कुछ सवाल || चक्रव्यूह को भेदों
चक्रव्यूह को भेदों is a grand contest brought to by Scribbling Inner Voice, अंदर की आवाज़ and कलम की ध्वनि. The competition comprises of 2 rounds and contains amazing perks for winners and participantsMore about Rupesh Gupta : " This is Rupesh Gupta. Writing gives me power to not only express but exercise what I feel. I believe learning is a never ending process, socurrently and forever in a learning process. Also you can read me on my instagram handle @kaarvan.e.kalam." एक उदास बच्चे के खुद से किये गए कुछ सवाल : ये क्या हो रहा है मेरे साथ,ये क्यो हो रहा है मेरे साथ।कुछ करना चाहूँ तो कर नहीं पा रहा हूँ,कुछ लिखना चाहूँ तो लिख नहीं पा रहा हूँ,कुछ बोलना चाहूँ तो बोल नहीं पा रहा हूँ,बस सब कुछ अपने अंदर ही दबाए जा रहा हूँ।जो मेरा है ही नहीं उसके बारे में सोचा जा रहा हूँ,जिसने मुझे कभी अपना भी नहीं कहाँ उसको अपना कहे जा रहा हूँ,जो रिश्ते कभी बने ही नहीं उन रिश्तों को निभाएं जा रहा हूँ,सब कुछ सह कर अंदर ही अंदर छिपाएं जा रहा हूँ।नहीं पता की ये क्या हो रहा है मेरे साथ,सब कुछ देखकर भी अनदेखा किये जा रहा हूँ,हो रहा है तक़लीफ़ इन बातों से कि,खुद के बारे में ही न जान पा रहा हूँ।दर्द हो रहा है फिर भी इन दर्दों को छिपाए जा रहा हूँ,न जाने क्यों अपने चेहरों पे झूठी मुस्कान लाये जा रहा हूँ।हर दिन कुछ करने की सोचता हूँ,हर दिन अपने बातों को कहने की सोचता हूँ,पर जाने क्यों,न कुछ कर पा रहा हूँ,न कुछ कह पा रहा हूँ।और अगर करू भी तो क्या करूँ,अगर कहूँ भी तो किससे कहूँ,क्योकि न कोई सपना नज़र आ रहा है,न कोई अपना नज़र आ रहा है,और जो अपने है उनसे भी अपनेपन का एहसास नहींं हो पा रहा है।कभी कभी सोचता हूँ की,अपनी सारी बातों को किसीसे कहूँ,लेकिन किस से कहूँ,ये प्रश्न मुझे क्यों सता रहा है,न जाने क्यों मुझे अकेलेपन का ही एहसास होते जा रहा है।दोस्त होते हुए भी दोस्ती का साथ नहींं मिल पा रहा है,परिवार होते हुए भी अपनेपन का एहसास नहींं हो पा रहा है।दोस्तो के बीच हर वक़्त मेरा मज़ाक बनते जा रहा है,परिवार का भी साथ नहींं मिल पा रहा है।जो दोस्त पहले कहते थे कि,मैं हर वक़्त तेरे साथ हूँ,तू जब कहेगा हम आ जाएंगे,आज उनकी जब ज्यादा जरूरत है तो,उनका भी साथ नहींं मिल पा रहा है,उनका जवाब सिर्फ इतना है कि,भाई मुझे इन सब नहींं पड़ना या समय नहींं मिल पा रहा है।ज़िन्दगी मेरी किस कदर गुज़र रही है,ये मुझे खुद नहींं समझ आ रहा है,बस चलता जा रहा हूँ एक ऐसे रास्ते पे,जिसका कोई अंत नहींं नज़र आ रहा है।क्या है मेरी मंज़िल,कहाँ जाना है मुझे,ये क्यों नहीं मुझे पता चल पा रहा है,सब कुछ पास होते हुए भी,कुछ भी नज़र नहीं आ पा रहा है,उजाले की दुनिया में होकर भी,क्यो मेरी ज़िंदगी मे ये अंधेरा छा रहा है।क्या हुआ है मुझे,क्यो मैं हर वक़्त खुद को दुख पहुँचा रहा हूँ,क्या मैं खुद को खोये जा रहा हूँ,क्या मैं खुद का ही अस्तित्व मिटा रहा हूँ।मैं कौन हूँ, क्यो हूँ, किस लिए हूँ?मुझे पता है कि,नहींं है मेरे पास मेरे किसी भी सवाल का जवाब,फिर क्यो मैं इतने सवाल खुद से किये जा रहा हूँ?क्यो?©️रूपेश गुप्ता/kaarvan.ae.kalam