ये झूठे समाज को कब तक सम्भाल पाओगे
(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है !एक झूठे समाज का भ्रम ये झूठे समाज को कब तक सम्भाल पाओगे व्यक्त गुज़रता रहा तो क्या तुम बच पाओगे मत भूलो ये व्यक्त भी जब सवाल पूछेगा उसका जवाब कैसे समाज पर छुपाओगे कब तक झूठी शान को लेकर चल पाओगे हिली नीव तो तुम कब तक फिर बच पाओगे जिन झूठे ख्वाबों में समाज का भ्रम पाले हो पिज़रे में ये भ्रम रखकर तुम चल पाओगे जिसको समाज कहकर भ्रम पाले रखे हो छोड़ गए गर अपने समाज से क्या पाओगे यही समाज जिसका भ्रम तुम पाले बैठे हो हाथ फैलाकर देखो खाली वापस आओगे बैठो अकेले खुद से सवाल करो तो पाओगे समाज के आडम्बर में खुद को अकेला पाओगे कितने लोगों को अक्सर तुमने देखे भी देखे होंगे व्यक्त गुज़र जाते ही अपनों पर रोते होंगे कब तक तुम इन बातों पर व्यक्त गवाते होगे सोचो समाज के चलते कितने को खोते होंगे