कवि का माथा ही है अंबर , कवि के पद से पाताल बनी

कवि का माथा ही है अंबर , कवि के पद से पाताल बनी । कवि के अधरो की लाली से रंगरूप उषा का काल बना । कवि रोया सावन घन उमड़ी मारू की चीर संचित प्यास बुझी , रिमझिम आंसू की बूंदों में करुणा को भी आवास मिला कवि हंसे फूल हंस पड़े और हीरक हिम को भी हास मिला , पतझड़ के सूखे पत्तों को मुस्काता पतवास मिला । कवि के अंतर में आग भरी कवि के आंखो में पानी है हम कवि है कवि की जीवन की दुनिया से अलग कहानी है।

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