मिराज़ आलम ( कठपुतली कला संरक्षक व वरिष्ठ रंगकर्मी)

शुक्रवार- "हमारी ज़िंदगी के रियल हीरो" दोस्तो! कलाओं के विविध रूप हमेशा से जनमानस का न सिर्फ मनोरंजन करते आये हैं बल्कि शिक्षित और हमारी सांस्कृतिक विरासत को मजबूत करते रहे हैं। इन्हीं विविध रूपों में कठपुतली खेलों ने भी कभी गाँव, हाट,मेलों,त्योहारों पर बच्चों को नैतिकता सिखाई तो बड़ों को सामाजिक सन्देश भी दिए लेकिन आज कठपुतलियां सिसक रही हैं क्योंकि उनकी जगह तो टेडीबियर ने ले ली जो हर घर और दुकान का हिस्सा है पर भोंदू सा सिर्फ स्थान घेरता है। आइये सुनें और जानें कठपुतलियों से जुड़ी बातें

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