धीरे चलो ! (Dheere Chalo !)

दुख के जंगल में फिरते हैं कब से मारे मारे लोगजो होता है सह लेते हैं कैसे हैं बेचारे लोगजीवन जीवन हम ने जग में खेल यही होते देखाधीरे धीरे जीती दुनिया धीरे धीरे हारे लोगवक़्त सिंघासन पर बैठा है अपने राग सुनाता हैसंगत देने को पाते हैं साँसों के उक्तारे लोगनेकी इक दिन काम आती है हम को क्या समझाते होहम ने बे-बस मरते देखे कैसे प्यारे प्यारे लोगइस नगरी में क्यूँ मिलती है रोटी सपनों के बदलेजिन की नगरी है वो जानें हम ठहरे बंजारे लोग

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