एपिसोड 46: बीबीसी की फ़ेक न्यूज़ पर रिसर्च, सीएनएन-ट्रंप टकराव, रफाल विवाद और अन्य
इस बार की चर्चा विशेष रूप से फ़ेक न्यूज़ को समर्पित रही. बीबीसी द्वारा फेक न्यूज़ के ऊपर किया गया एक रिसर्च इस हफ्ते बहस में रहा. इसके अलावा अमेरिका में ट्रंप प्रशासन द्वारा सीएनएन के व्हाइट हाउस संवाददाता जिम एकोस्टा का पास निलंबित करना, बदले में सीएनएन द्वारा ट्रंप को अदालत में घसीटना और एएनआई समाचार एजेंसी की संपादक स्मिता प्रकाश द्वारा रफाल लड़ाकू जहाज बनाने वाली कंपनी दसों के सीईओ का साक्षात्कार इस हफ्ते की एनएल चर्चा के प्रमुख विषय रहे.इस बार की चर्चा में बीबीसी डिजिटल हिंदी के संपादक राजेश प्रियदर्शी बतौर मेहमान शामिल हुए. इसके अलावा न्यूज़लॉन्ड्री के असिस्टेंट एडिटर राहुल कोटियाल, विशेष संवाददाता अमित भारद्वाज भी शामिल रहे. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.चर्चा की शुरुआत अतुल चौरसिया ने राजेश प्रियदर्शी के सामने एक सवाल के साथ की- “बीबीसी के रिसर्च की बड़ी चर्चा है. हम चाहेंगे कि आप संक्षेप में इसके मुख्य नतीजों और रिसर्च के तरीके के बारे में बताएं.”राजेश प्रियदर्शी ने बताया, “फ़ेक न्यूज़ को लेकर हर तरफ से कहा जाता है कि दूसरा पक्ष फ़ेक न्यूज़ फैला रहा है. समस्या की जड़ वहां है जहां आम आदमी किसी न्यूज़ पर भरोसा करके उसे आगे बढ़ाता है. यह काम वो किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए करता है.”वो आगे कहते हैं, “हमने इस रिसर्च के जरिए यह जानने की कोशिश की है कि फ़ेक न्यूज़ फैलाने वाले लोग कौन हैं. किन वजहों से वो ऐसा करते हैं. उनके दिमाग में क्या है. ऐसे लोगों का मोटीवेशन क्या है. इस पर बीबीसी ने एक क्वालिटेटिव रिसर्च की है, जिसमें चीजों को गहराई से समझने की कोशिश की गई है. हमने राष्ट्रीय स्तर पर कोई सर्वेक्षण नहीं किया है. अलग-अलग शहरों में अलग-अलग आयु, आय और जेंडर के 40 लोगों के सोशल मीडिया बिहेवियर को परखा गया है.”यहां अतुल ने हस्तक्षेप किया, “आपने कई बातें बताई. रिसर्च से एक बात सामने निकल कर आई कि भारत में फ़ेक न्यूज़ के पीछे नेशनलिज्म बड़ा फैक्टर है जो लोगों को फ़ेक न्यूज़ की दिशा में प्रेरित कर रहा है. दुनिया भर में दक्षिणपंथी सोच का प्रभाव फ़ेक न्यूज़ के ऊपर ज्यादा है. इस समय ज्यादातर देशों में ऐसी ही सरकारें भी हैं. तो इसमें सरकारों की क्या भूमिका दिखती है.”राजेश के मुताबिक इसमें चार चीजें मुख्य रूप से भर कर सामने आई. हिंदू सुपीरियॉरिटी, हिंदू धर्म का पुनरुत्थान, राष्ट्रीय अस्मिता और गर्व, एक नायक का व्यक्तित्व (इस मामले में मोदी). ये चारो चीजें आपस में गुंथी हुई हैं.राहुल कोटियाल ने इसके एक दूसरे पहलु पर रोशनी डालते हुए कहा, “इस रिसर्च को किसी अकादमिक दस्तावेज में शामिल नहीं किया जाएगा. इसकी वजह शायद इसका छोटा सैंपल साइज़ है. यह विरोधियों को इस रिसर्च को खारिज करने का अवसर भी देता है. बीबीसी इस सवाल से कैसे निपटेगा?”जवाब में राजेश कहते हैं, “मूल बात यह है कि बीबीसी कोई अकादमिक संस्था नहीं है. यह येल या हार्वर्ड नहीं है. हमारी चिंता मीडिया फ्रटर्निटी में मौजूद फ़ेक न्यूज़ की समस्या थी. यह रिसर्च कोई अंतिम सत्य नहीं है.”अमित भारद्वाज का सवाल इस पूरी चर्चा को एक अलग धरातल पर ले जाता है. उन्होंने कहा, “इस रिसर्च से यह बात उभर कर सामने आई कि हिंदुत्व और नेशनलिज्म फ़ेक न्यूज़ के अहम फैक्टर हैं. रिपोर्ट पढ़कर हिंदुत्व का फैक्टर बड़ी प्रमुखता से सामने आता है. लेकिन रिपोर्ट में नेशनलिज्म शब्द चुना गया, हिंदुत्व नहीं. क्या यह सोच-विचार कर उठाया गया क़दम था?”इस सवाल के साथ ही अतुल ने भी एक सवाल जोड़ा, “आपने बताया कि 40 लोगों से सहमति ली गई कि आप उनके सोशल मीडिया बिहेवियर का आकलन करना चाहते हैं. बहुत संभव है कि जिन लोगों पर आप रिसर्च कर रहे थे उनके दिमाग में कहीं न कहीं यह बात चल रही हो कि उनके ऊपर नज़र रखी जा रही है, ऐसे में उनका व्यवहार सामान्य न रहकर चैतन्य हो सकता है.”इन सवालों के बेहद दिलचस्प जवाब राजेश प्रियदर्शी ने दिए. उनका पूरा जवाब और अन्य विषयों पर पैनल की विस्तृत राय जानने के लिए पूरी चर्चा सुने. See acast.com/privacy for privacy and opt-out information.