एपिसोड 41: किसानों का दिल्ली मार्च, शबरीमाला पर फैसला और अन्य

पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड से आए किसानों पर हुआ लाठीचार्ज, शबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर केरल में महिलाओं का व्यापक विरोध और लखनऊ में विवेक तिवारी की पुलिसकर्मी द्वारा हत्या जैसे विषयों पर आधारित रही इस हफ्ते की न्यूज़लॉन्ड्री चर्चा.स्वतंत्र पत्रकार और दिल्ली यूनिवर्सिटी में अस्थायी शिक्षिका स्वाति अर्जुन इस हफ्ते चर्चा की मेहमान पत्रकार रहीं. न्यूज़लॉन्ड्री के असिस्टेंट एडिटर राहुल कोटियाल, प्रतीक गोयल पैनल में शामिल रहे. इसके अलावा अमित भारद्वाज फोन पर चर्चा में जुड़े. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.शबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की आयुसीमा पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला और उस पर केरल में मचे संग्राम पर विस्तृत चर्चा हुई. चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल चौरसिया ने कहा, “या तो आप आस्तिक हो सकते हैं या फिर नास्तिक. आस्था में तर्क के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता है.”अतुल ने आगे जोड़ा, “आप यज्ञ में आहुति देते हैं तो उसके लिए तीन उंगलियों से आहुति देने का प्रावधान है. तर्क यह कहता है कि पूरे हाथ से उठाकर आहुति आग में डाल दीजिए. सिर्फ तीन उंगलियों से क्यों? बाकी दो उंगलियों से भेदभाव क्यों? लेकिन आस्था में यह तर्क काम नहीं करता. इस लिहाज से शबरीमाला मामले में असहमति का आदेश देने वाली जज इंदु मल्होत्रा काफी हद तक सही हैं.”राहुल कोटियाल ने इससे असहमति जताते हुए कहा, “धर्म में सुधार का विचार भी समय के साथ-साथ चलता रहता है. हमारे यहां समय-समय पर इसके तमाम उदाहरण हैं. सती प्रथा एक समय में समाज में पूरी तरह से स्वीकार्य थी. लेकिन राजा राममोहन राय ने अंग्रेजों के साथ मिलकर इसका प्रतिरोध किया और अंतत: यह कुप्रथा समाज से समाप्त हो गई.”राहुल आगे जोड़ते हैं, “इस तरह के कानून कम से कम एक मौका देते हैं जहां किसी भी तरह की आस्था के शिकार लोग कम से कम अपने लिए न्याय की अपेक्षा कर सकते हैं. यही स्थिति तीन तलाक़ के ऊपर आए फैसले में भी हमने देखा था.”स्वाति ने इसका एक अन्य पक्ष सामने रखा. उन्होंने कहा, “समाज की संरचना में महिलाओं की स्थिति ऐसी कर दी गई है कि वे कोई स्वतंत्र निर्णय ले पाने की स्थिति में ही नहीं होती है. यहां एक महिला के वोट देना का निर्णय भी उसके परिवार के लोग ही तय करते हैं. जो महिलाएं शबरीमाला मंदिर के फैसले के खिलाफ आज सड़कों पर उतर रही हैं उनमें से अधिकतर अपने परिवारों के दबाव में ऐसा कर रही होंगी.”प्रतीक ने इसमें केरल और तमिलनाडु के इलाके में पारिवारिक संस्था के ऊपर अपनी बात रखते हुए बताया कि- “केरल और इस इलाके में समाज एक हद तक स्त्रीवादी है. वहां बच्चियों के प्यूबर्टी एज का जश्न मनाया जाता है.”बाकी विषयों पर पैनल की विस्तृत राय जानने के लिए सुनें पूरी चर्चा. See acast.com/privacy for privacy and opt-out information.

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