शर्म करे ऐ हुक्म मरानों

लिजिए सुनिये मेरी क़िताब कामिनी से एक और नई कविता!!शर्म करो ऐ हुक्मरानों, शर्म करो कुछ शर्म करोजनता त्राही-त्राही गाए, जन सेवक अपना कर्म करोजब-जब तुमने आह्वान किया, देश की जनता दौड़ पड़ीतेरे हर निर्णय पर अपना हर कष्ट भुला कर साथ खड़ीतेरी सूरत में जनता को एक मसीहा दिखता थातू कुछ भी कर सकता है, सबको ऐसा लगता थातुम इनका विश्वास न तोड़ो, दशा पर इनके रहम करोजनता त्राही-त्राही गाए, जन सेवक अपना कर्म करोतूने जो बोला सबने माना, न कोई विचार कियातेरे हर निर्णय के घावों का खुद ही सबने उपचार कियादेशहित के नाम लेकर तूने, जो भी जब भी मांगा हैइस जनता ने झाड़ कर झोली, सब कुछ तुझको दान दियाआज वो जनता मरती जाए, उनके दुःख का न अपमान करोजनता त्राही-त्राही गाए, जन सेवक अपना कर्म करोआज जो इनके आँसू न पोंछे, कल ये सब न वो भुलाएंगेअगली बार जब मतदान करेंगे, तुम्हें फिर से न सिर बैठाएंगेसारी शक्ति पास तुम्हारे, तुम इच्छा क्यों न दिखाते होमानव जीवन है सबसे ऊपर, क्या ये समझ नहीं पाते होअपने घर को तुम रखकर बीमार, न औरों का उपचार करोजनता त्राही-त्राही गाए, जन सेवक अपना कर्म करो

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