तुझे पाना ही बस मेरी चाह नहीं

लिजिए सुनिये मेरी क़िताब कामिनी से एक और नई कविता!!तुझे पाना ही बस मेरी चाह नहीं,बदन मिल जाना ही इश्क़ की राह नहीं।जिस्म का क्या है, मिट्टी में मिल जाएगा,हाँ, मगर रूह को कोई परवाह नहीं।लबों ने लबों को तो बाद में छुआ,पहले तू रूह से हमारा हुआ।अब जिस्मों के मिलने की किसको है पड़ी,अब ये रिश्ता भी हमारा रूमानी हुआ।मिट जाएँगे हम, नाम भी मिट जाएगा,पर हमारा इश्क़ क़यामत तक गाया जाएगा।लैला-मजनूं, मिर्ज़ा-साहिबा, सोहनी-महीवाल,सभी के साथ हमारा नाम लिया जाएगा।मिटा दो वो मिसालें, जिनमें इश्क़ अधूरा है,हमसे मिलो, हमारा इश्क़ ज़िंदा है, पूरा है।वो कमज़ोर थे जिन्होंने मिलन को मौत माँगी थी,हम जी रहे हैं और हमारा हर ख्वाब भी पूरा है

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