शबे vasl ki dastan Episode 41

This poem is written by rizwan khan sultan alig फिरता था जिस की याद में लाचार रात भर बैठा रहा वो सामने दिलदार रात भर कंधे पे रख के सर मेरे सोया जो देर तक दिल को लुभाया वो बहुत किरदार रात भर बाहों का हार डाल कर मेरे गले में वो करता रहा वो मुझ को यूं ही प्यार रात भर खुशियों के साए में मेरी गुजरी तमाम shab लज्जत उठाई हुस्न से इस बार रात भर दोनों की सांसें हो गईं आपस में मुंटकिल होता रहा ये इश्क में हर बार रात भर रूहों के इत्तेहाद में

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