अजुरदा हो चले हम गुलशन की दास्तां से Episode 111
Here’s an episode that will keep you waiting for the next one. Tune in This gazal is written by Rizwan khan sultan alig अजुर्दा हो चले हैं गुलशन की दास्तां से मायूस हैं ये गुल भी खुद अपने बागबान से वो रहजनों का अब तो देता है साथ खुल के उम्मीद भी ये ही थी बस अपने पासबान से लब पर लगा के ताला सच को छुपा रहे हो अब हाल इस चमन का पूछें क्यूं बेजबान से तूफान ने उजाड़ा या बरक उस पे लपकी बुलबुल तो कैद में है क्या उस को आशियां से इस जिंदगी की रौनक अब छिन