किसी ने ऐसे ही ना शहर बसाया होगा

(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है  !किसी ने ऐसे ही ना शहर बसाया होगा समाज से ऐसे ही ना जान छुड़ाया होगा अपनों से निकलने का खोजा तरीका होगा फिर टूट कर के अपनों से निकल पाया होगा जिनको घमंड था हक दिखाने का उसपर अक्सर इतनी आसानी से कैसे उनसे मुह मोड़ पाया होगा किसी ने ऐसे ही ना शहर बसाया होगा समाज से ऐसे ही ना जान छुड़ाया होगा बीती बातें हिला देती होंगी उसको अंदर से अक्सर जब झूठे समाज के डर से कुछ ना कर पाया होगा अकेले नहीं बैठ पाता होगा यूंही जब वो अक्सर अपनी बातों में खुद को उलझा हुआ पाया होगा किसी ने ऐसे ही ना शहर बसाया होगा समाज से ऐसे ही ना जान छुड़ाया होगा लोग कहते थे पैसे पर बदल जाते हैं लोग अक्सर किसी को कैसे बताए समाज ने सब कुछ करवाया होगा सब रास्ते बंद कर दिए होंगे समाज के नाम पर तुमने परेसा हो आखिरी व्यक्त में उसने ये कदम उठाया होगा किसी ने ऐसे ही ना शहर बसाया होगा समाज से ऐसे ही ना जान छुड़ाया होगा

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