उस रात भी कोई आया था

(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है  !उस रात भी कोई आया था हस कर के हमें बुलाया था मैं था कुछ ऐसा फसा हुआ मैं उनसे ना मिल पाया था पायी थी मैंने एक झलक गुज़री जब वो मुझसे होकर सोचा फिर ना रुक पाया था चलना था ना चल पाया था जो हुआ ना होने वाला था जो गुज़रा व्यक्त हमारा था वो एक सपने से भी प्यारा था ना व्यक्त मिला ना व्यक्त किया मिलने का ख्वाब हमारा था जो एक सपने सा प्यारा था उस रात भी कोई आया था हस करके हमे बुलाया था

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