एक बदलाव तुम्हारा था

(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है  !एक बदलाव तुम्हारा था जब बैठे थे हम राज घाट पर वो फैसला तुम्हारा थामिलते थे अक्सर शाम जो वो फैसला तुम्हारा थाबीती बातों को लेकर ढोने का वो फैसला तुम्हारा थाहर बार पुरानी बातो पर रोने का वो फैसला तुम्हारा थामिलने और फिर मिलकर बिछड़ने का वो फैसला तुम्हारा थाहुई जो सारी जो बाते वो सारा दाव तुम्हारा थाजिसे तुम पराया कहते हो वो फैसला तुम्हारा थाना अगर कर सके इंतजार तो वो फैसला तुम्हारा थाआज भी आई वही शाम ना आने का फ़ैसला तुम्हारा थाआज भी हम है उसी जगह जिस पर कल हक तुम्हारा था छोड़कर हमको चले गए कहते हो बदलाव तुम्हारा थावक्त वक्त की बाते थी इस बार का वक्त तुम्हारा था भूलो न वक्त भी बदलेगा फैसला जो अभी तुम्हारा था हम कल भी आयेंगे यादों में संकल्प जो रहा हमारा था जब बैठे थे हम राज घाट पर वो फैसला तुम्हारा थामिलते थे अक्सर शाम जो वो फैसला तुम्हारा था

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