कोई फिर ना आया अकेले अकेले

(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है  !शाम ढ़लने को आयी अकेले अकेले कोई फिर ना आया अकेले अकेले ना भरोसा जताया अकेले अकेले ना उम्मीदी यूं छायी अकेले अकेले नजर कोई ना आया अकेले अकेले खुद पर ही मुस्कुराया अकेले अकेले बोल कर भी ना वो आया अकेले अकेले फिर बहाना बनाया अकेले अकेले आज फिर खड़ा था अकेले अकेले घाट फिर जगमगाया अकेले अकेले आज कोई भी ना आया अकेले अकेले इंतजार यूं कराया अकेले अकेले दीपक यूं जलाया अकेले अकेले उदास शाम आयी अकेले अकेले उदासी यूं छाई अकेले अकेले कोई फिर से मुस्कुराया अकेले अकेले गुज़रा शहर याद आया अकेले अकेले 

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