कितना बदल गए हो तुम

(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है  !किसी के पास करने को काम ना हो किसी के काम के करने का अंजाम ना होदिशाहीन रास्तो से अक्सर निकल जाते हो अक्सर खुद को रास्तो में भटका पाते हो नया रास्ता देखकर जब वो बदल जाते हो कुछ दूर चलकर खुद को ठगा सा पाते हो तब लोग तो कहेंगे ना कितने बदल गए हो तुम हर बार रास्तो से खुद को भटका पाते हो घनघोर अंधेरे में जब वो सो जाते हो सुबह के इंतजार में जब वो व्यक्त बिताते हो सुबह होने पर जब कई रास्ते नजर आते हो हर दिन वो फिर अलग रास्ते पर जाते हो हर बार सफल होने का नया रास्ता अपनाते हो फिर शाम होने पर वही रुक जाते हो आपको जब सफल हुआ पाते हो तब लोग तो कहेंगे ना कितना बदल गए हो तुम

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