छोड़कर मैं तुम्हारा शहर जा रहा हूं

(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है  !छोड़कर मैं तुम्हारा शहर जा रहा हूंना जाने कितनी यादों से ग़म जा रहा था था यादों मे खोया ना मन जा रहा था जिंदगी बेहतर बनाने को मैं जा रहा था नयी पारी कि अब नयी शुरुआत करनी थी जो बिता अब उस पर ना कोई बात करनी थी जिंदगी कि अब नयी शुरुआत करनी थी अब अकेले सफर में खुद से बात करनी थी मुसाफिर थे हम भी मुसाफिर थे वो भी नए मुसाफिरों के साथ नयी मुलाकात करनी थी अब अंजान शहर में अकेले खुद से बात करनी थी छोड़कर कर अकेला मैं तेरा शहर आया था उठाकर के कुछ यादे मैं संग लाया था ये सफर भी कुछ अनजाना सफर था मेरा मैं अक्सर उन यादों के भंवर में रहा मैं अक्सर उन यादों के सफर में रहा

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