बीत गया बसंत मगर तुम न आये थे

(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है  !तुम न आये थे बीत गया बसंत मगर तुम न आये थेबदला मौसम का रंग मगर तुम न आये थेमै रहा मौसम के संग मगर तुम न आये थेसूखा सूखा बीता मौसम मगर तुम न आये थेपतझड़ का मौसम भी हमसे मिलने आया थावो रहा हवा से तंग मगर फिर भी आया थासंग हवा के झोके भी अपने वो लाया था।हवा भी तेरी तरह ही चलकर ही आयी थीरुकी नहीं पर मौसम पतझड़ कर आयी थी आते तो अच्छा होता पर तुम न आये थेखुशियो के खुले भण्डार न तुम भर पाए थेसावन के पहले अक्सर पतझड़ आते थेमौसम को वो अक्सर झटका दे जाते थेसावन आखिरी बार न जाने कब रोया थाबसंत कि बहार में न जाने कब खोया थाबीत गया बसंत मगर तुम न आये थेबदला मौसम का रंग मगर तुम न आये थे 

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