शाम आज फिर आयी होगी

(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है  !शाम आज फिर आयी होगी ऑफ़िस मे वक्त गवायी होगी बोली थी वो साथ आयेगी आकर घाट पर वो जायेगी हमको यूँ तो चलना ही था मन का यूँ तो मचलना ही था शाम आज फिर आयी होगी ऑफ़िस मे वक्त गवायी होगी उसका शहर मै छोड़ आया था अपनी यादे मै साथ लाया था बनारस कि जो तंग गलियाँ थी फिर ना मिलेंगी जो सखिया थी घाट पर शाम का मिलना जो था कुछ लोगो का बिछडना जो थाशाम आज फिर आयी होगी ऑफ़िस मे वक्त गवायी होगी शाम आज फिर आयी होगीघाट पर जमावड़ा लगायी होगी ऑफ़िस कि कैसी मजबुरी थी नौकरी ने बनारस छुडवाई थीशाम आज फिर आयी होगी ऑफ़िस मे वक्त गवायी होw!

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