अभी आखिरी चाल बाकि है

(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है  !आखिरी चाल बाकि है अभी चलोगे और कितनी चाले !क्या अभी और भी चाल बाकि है !!क्या तुम समझते हो नादान कि अभी चाल बाकि है !या हो खुद से नादान कि अभी चाल बाकि है !!तुम खेल मे हो प्यादा मगर वजीर समझ बैठे हो !क्या चलोगे वही पुरानी चाल या शतरंज खेल बैठे हो !!हर चाल मे अपनी उलट कर फस ही जाते हो !अगर आये हो खुले मैदान मे तो नयी चाल भी खेलो !!मै खुद मे हूँ परेसान नयी चाल तो खेलो !अगर नजरो मे ले बैठे हो दोष तो कसूर मेरा उसमे क्या है !!नही बदल सकते अपनी सोच तो अपना नजरिया ही बदलो !तुम्हे लेकर चलूँ मै साथ तुम्हारी हैसीयत क्या है !अगर चलना हो मेरे साथ तो अपनी हैसियत को बदलो !!हमने भी बहुत खाई है ठोकरे चौसर बिछाने मे ! बिछानी हो तुम्हे भी चौसर तो अपनी सोच को बदलो !!मै कैसे समझ बैठू कि तुम एक चाल झेल पाओगे !!तुम तो अपनी सारी चाले ही गवां दी बस प्यादा सजाने मे !मै तुमको आगे निकलने दू उसकि उम्मीद मत रखना!चौसर का सही खेल ही है सामने वाले को गिराने मे ! माना कि तुम खिलाड़ी थे चौसर के खेल का !कैसे कहूँ कि तुम हारे पहला प्यादा बढाने में !!चलो जाओ तुंम्हे एक मौका और देता हूँ!हो सकता है सम्भल जाओ तुम अगली चाल बढाने मे !!तुम्हारी चाल हर बार मौका एक देती है !खेल कितना चलाऊ मै तुमको चौसर सिखाने मे !!तुम खुद ही बता देना अगर खेल हो जाए पूरा !हम चाल बर्बाद नही करते कभी चौसर बिछाने मे !!नही फ़िर से बदल कर चाल तुम वापस को आओगे !!फ़िर से एक बार नया चौसर बिछाओगे !अगर खेलना हो चौसर तो कूद जाना मैदान मे !!कब तक प्यादे को वजीर समझ कर दौड़ओगे चलोगे और कितनी चाले क्या अभी चाल बाकि है ubey

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