आओ कुछ देर तो अस्सी घाट पर बैठे

(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है  !कुछ देर आओ कुछ देर तो अस्सी घाट पर बैठे !चादनी रात का उजाला आने वाला है !!फिसला जो एक बार ये वक्त हाथ से ! फ़िर कभी ना दोबारा आने वाला है !!शाम ढल भी चुकि दिपक जल भी चुका!तुम तो आही गयी मै भी आही गया!!ये जल रहा दिपक उजाला लाने वाला है !जलते दिपक से उजाला छाने वाला है!!खो जाए दिपक मे रोशनी के लिये !जो रौशनी अब जीवन मे छाने वाला है!!बुझ जायेगा ये दिपक अगर एक बार!लौटकर ये उजाला फ़िर ना आने वाला है!! ये वक्त कभी यूँही ना बेवक्त आयेगा !जो वक्त आज आगे आने वाला है !!साथ है आज हम अकेले आधी रात मे !फ़िर ना होगी ये बाते आधी रात मे !! फ़िर जलाते है दिपक आधी रात मे!आज आया जो वक्त कल बदल जायेगा !!जो हकिकत है कल यादो मे बिखर जायेगा !जो रहे साथ हरदम ये जरुरी नही !!वक्त देखा है हमने बदलते हुए !हमने कितनो को खोया है चलते हुए !!वक्त के साथ देखा सब कुछ बदलते हुए !जो आज सपना है कल वो बिखर जायेगा !!जो भरोसा अगर तुमसे उठ जायेगा जो टूटा है वो फ़िर कब जुड़ पायेगा !याद चीजे जो बनकर ये रह जाय

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