गर्भाधान संस्कार क्यों?

दांपत्य जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है-श्रेष्ठ गुणों वाली, स्वस्थ, ओजस्वी, चरित्रवान और यशस्वी संतान प्राप्त करना । स्त्री-पुरुष की प्राकृतिक संरचना ही ऐसी है कि यदि उचित समय पर संभोग किया जाए, तो संतान होना स्वाभाविक ही है, किंतु गुणवान संतान प्राप्त करने के लिए माता-पिता को विचार पूर्वक इस कर्म में प्रवृत्त होना पड़ता है। श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति के लिए विधि-विधान से किया गया संभोग ही गर्भाधान संस्कार कहा जाता है। इसके लिए माता-पिता को शारीरिक और मानसिक रूप से अपने आपको तैयार करना होता है, क्योंकि आने वाली संतान उनके ही आत्म का प्रतिरूप है। इसीलिए तो पुत्र को आत्मज और पुत्री को आत्मजा कहा जाता है।गर्भाधान के संबंध में स्मृति संग्रह में लिखा है-निषेकाद् बैजिकं चैनो गार्भिकं चापमृज्यते ।क्षेत्र संस्कारसिद्धिश्च गर्भाधानफलं स्मृतम् ॥अर्थात् विधि पूर्वक संस्कार से युक्त गर्भाधान से अच्छी और सुयोग्य संतान उत्पन्न होती है। इस संस्कार से वीर्य संबंधी तथा गर्भ संबंधी पाप का नाश होता है, दोष का मार्जन तथा क्षेत्र का संस्कार होता है। यही गर्भाधान संस्कार का फल है।पर्याप्त खोजों के बाद चिकित्सा शास्त्र भी इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि गर्भाधान के समय स्त्री-पुरुष जिस भाव से भावित होते हैं, उसका प्रभाव उनके रज-वीर्य में भी पड़ता है। अतः उस रज- वीर्यजन्य संतान में माता-पिता के वे भाव स्वतः ही प्रकट हो जाते हैं-आहाराचारचेष्टाभिर्यादृशोभिः समन्वितौ ।स्त्रीपुंसौ समुपेयातां तयोः पुत्रोऽपि तादृशः ॥ सुश्रुत संहिता / शारीर / 2/46/50

2356 232

Suggested Podcasts

Author Mike Mutzel interviews Jeff Bland, Datis Kharrazian, Ben Greenfield, Abel James, Dave Asprey, Ben Lynch, Jade Teta and Corey chuler

James K. (JK) Live

Caramel_heart Ap

Binish Kaur