Episode 1 - चाँद और कवि
'चाँद और कवि' दिनकरजी का प्रगतिशील कविता है। आदमी के स्वप्न की तुलना जल के बुलबुलों से चाँद करता है। बुलबुलों से खेलकर कवि कविता बनाता है। क्षण में टूट जानेवाले बुलबुलों को सच मानकर कविता करनेवाले कवि पर चाँद यहाँ व्यंग्य करता है।