पीठ से पीठ मिलाये बैठे हैं. स्वर सेवा: किशोरी दासी (अंजुना जी)
*जय गौर हरि* पीठ से पीठ लगाइ खड़े, वह बाँसुरी मन्द बजाय रहे हैं। सौभाग्य कहूँ उस धेनु के क्या, खुद श्याम जिसे सहलाय रहे हैँ। बछड़ा यदि कूद के दूर गयौ, पुचकार उसे बहलाय रहे हैं। गोविंद वही,बृजचंद्र वही, गोपाल वही कहलाय रहे हैं॥ स्वर सेवा: *किशोरी दासी (अंजुना जी)*