Featuring Simpy Goel || ज़िन्दगी- आधी क़र्ज़, आधी फ़र्ज़ || Dastaan Ae Kalam

About Dastaan Ae Kalam :दास्तान ए कलम is a grand contest in collaboration with अंदर की आवाज़, Mirror Of Emotions and दिल की आवाज़ . It was a 3 round contest which was popular among many writers and non writers. 100+ people registered for the sameFeaturing Simpy Goel ! More about Simpy Goel : सिम्पी गोयल, उम्र -23 वर्ष,धारूहेड़ा (हरियाणा) की निवासी, श्री शिवओम और श्रीमती वंदना गोयल की पुत्री है! वह एम.एससी. (केमिस्ट्री) में स्वर्ण पदक विजेता है, और लेखनी में भी रुचि रखती है! दिल से वो लिखती है, दिल की वो लिखती है,दिल से दिल तक पहुँच सकें ज़ज़्बात, शब्दों के ज़रिये यही कोशिशें करती है!ज़िन्दगी- आधी क़र्ज़, आधी फ़र्ज़ :मुश्किल सी लगती है न ज़िन्दगी, चलो कुछ आसां बना दे,ख़्वाबों की ज़िन्दगी को, क्यूँ न हक़ीक़त से मिला दे!मामूली सी ज़िन्दगी को कुछ यूँ दे तर्ज़, दो लव्ज़ों में आज कुछ यूँ करें अर्ज़ कभी है क़र्ज़ ये तो कभी है फ़र्ज़, न बनकर ज़रा भी खुदगर्ज़, क्यों न त्याग दे हम हर मर्ज़! भागती हुई ज़िन्दगी को कुछ यूँ थाम लें,क़र्ज़ फ़र्ज़ में झूलती ज़िन्दगी,क्या आज उसे थोड़ा सा आराम दें!ले साँस आहिस्ता ज़रा कुछ क़र्ज़ चुका लें,रह न जाए कुछ बाकी फिर चलो ज़रा अपने फ़र्ज़ दोहरा लें!कुछ रूठों को मना ले, भीतर सोते इंसान को जगा लें,कुछ ज़ख्मों की दवा लें, कुछ टूटे दिलों को वफ़ा दे, माँ के दूध का क़र्ज़ चुका लें,सेवा कर हर फ़र्ज़ निभा लें,मरी ख्वाइशों को दफना लें, या कुछ नयी हसरतें अपना लें,पिता के स्वाभिमान को सजा लें, उनके काँधे के बोझ को अपने काँधे पर उठा लें,ढलती उम्र के हर पल का क्यूँ न जी भर के मज़ा लें,क़र्ज़ फ़र्ज़ में उलझी ज़िन्दगी को क्यूँ न थोड़ा और सुलझा लें,चलो हिसाब सारा निकाल कर एक बही खाता ही बना लें, रहस्मयी जीवन से निकल खुशियों से नाता बना लें!क़र्ज़ में जीवन है या जीवन में है क़र्ज़,हर क़र्ज़ सूत समेत चुकाना यही है हमारा फ़र्ज़!कहने को क़र्ज़-फ़र्ज़ है अलग-अलग,पर हैं जीवन की पटरी जैसे,  साँसों के संग समानांतर चले, पटरी से ये कभी न उतरे,सफ़र में है जो ज़िन्दगी, क्यूँ न सफ़र का कुछ लुफ़्त उठा लें,ज़िन्दगी की ज़िन्दगी से कुछ तो जान पहचान करा लें, हर रिश्ते के प्रति हर फ़र्ज़ निभा आज हर क़र्ज़ लें उतार,मझदार में मचलती नौका को लगा कर पारकुछ इस कदर अपना व्यक्तित्व लें निखार,पल-पल में ही रही सिखाती, गुरु रुपी इस ज़िन्दगी को गुरु दक्षिणा आज चढ़ा दें,वचनों, कसमों, रस्मों से बंधा जीवन, इनका भी कुछ क़र्ज़ चुका लें,क़र्ज़ फ़र्ज़ की उलझन को ज़िन्दगी रहते ही सुलझा लें,ज़ेहन में लगी आग को पछतावे के अश्रुओं से बुझा लें!इंसान रुपी जनम के क़र्ज़ से, इंसान बन जीने के फ़र्ज़, हर क़र्ज़ चुका हर फ़र्ज़ अदा करें, इससे पहले ढल जाये ज़िन्दगी की शाम, ज़िन्दगी का क्यूँ न आज कुछ तो शुक्रिया अदा करें!©Simpy Goelinstagram Id: @inking_thinkings

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