Featuring Suraj Suresh Dixit || एक घिनौंना रूप बलात्कार का ऐसा भी || Bazm Ae Sukhan 2.0 || SIV Writers

Featuring Suraj Suresh Dixit !More about Suraj Suresh Dixit : सूरज सुरेश दीक्षितउम्र :- २४ ,शहर :-आर्वी निवासी, राज्य :-महाराष्ट्र के रहने वाले है।वे एचपीसीएल के एच पी गैस में उप प्रबंधक के पद पर कार्यरत हैं। एवं स्वयं का व्यक्तिगत व्यवसाय भी संभालते हैं। साथ ही साथ वे हिंदी और मराठी रचनाकार लेखक भी है।वे रचना का आकलन छोटी या बड़ी से नहीं,बल्कि रचना के भाव की सुंदरता को अधिक महत्व देते हुए करते है।✍️Instagram/Facebook :- @Sangharshsuraj / @Surajdixit11 एक घिनौंना रूप बलात्कार का ऐसा भी : हवस की नयी परिभाषा से रूबरू होना होंगा, नया रूप बलात्कार का ना चाहते हुए भी सुनना होंगा।कड़वा है सच मगर मुझे बोलना होंगा,लगे समाज की जुबान पर डर के तालो को,आज खोलना होंगा।यहाँ वक्त गुजर रहा था,जवानी आ रही थी,कही नए शिकार खातिर,हवस जाग रही थी।बलात्कार के नाम को दुनिया लड़कियों से जान रही थी, कौन जानता था इस बार नियती कुछ और माँग रही थी।आज भी किसी की ज़िन्दगी का रूख मोड रही थी,चढ़ने बली फिर एक और डोली उठ रही थी।शादी की नहीं,डोली किसी के अरमानों की उठ रही थी,हैवानियत भी एक नयी कहानी लिख रही थी।वासना की आज भी भूख मिट रही थी,उतर रहे थे कपड़े और चीख़ गूंज रही थी।कोशिश सुकून पाने की जोरों से हो रही थी,रैना भी बन गवाह शर्मसार हो रही थी।दरिंदगी की आज भी हदे सारी पार हो रही थी,कप-कपाती रूह भी मनुष्य जन्म पाने को कोस रही थी।दया-भाव को मिटा आज मानवता खो रही थी,प्रसन्नता के आधीन जात मानवीय हो रही थी।पुकार सहायता की चहु और लग रही थी, ज़िन्दगी और मौत से एक जान झुंझ रही थी।सुंदरता ही स्वयं को अभिशाप मान रही थी, क्रंदन कर जोर-जोर से इंसाफ़ माँग रही थी।चलती साँसे भी थम जाने का अनुरोध कर रही थी,उम्मीद भी जीने की अंदर ही अंदर अपना गला घोंट रही थी।हाँ बंद चार दिवारी में आज भी एक इज़्ज़त लूट रही थी, सिर्फ एक लड़की के जगह आज बली लडके की चढ़ रही थी।पहचान गुनाह की कभी कोई लिंग से नहीं थी,बलात्कार जैसे दुष्कर्मों की कभी जात-पात ना थी।वंचित दुनिया में इससे पुरुष जात भी ना रही, जुर्म सिर्फ जुर्म है,इसका विशिष्ट कोई नाम नहीं।Writer:-!!$rj!! :-Suraj S DixitInsta id:- Sangharshsuraj

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