बोध - प्रेमचंद | Bodh - Premchand.

पंडित चंद्रधर, जो अध्यापक थे, वे सदा पछताया करते थे कि यदि वे किसी अन्य विभाग में नौकर होते तो अब तक हाथ में चार पैसे होते। उनके दो पड़ोसी, एक दारोगा थे और एक तहसील में सियाहे नवीस थे, जिनका वेतन पंडित जी के वेतन से कुछ अधिक न था, फिर भी उनकी चैन से गुज़रती थी। नौकर-चाकर थे, ठाठ-बाट था। पर कुछ ऐसा होता है जिससे उन्हें अंत में ज्ञात होता है कि अध्यापक का पद कितना महान है, शिक्षक समाज में कितना गौरवशाली है। ... ऐसा क्या होता है  ?   जानने के लिए सुनते हैं मुंशी प्रेमचंद जी की कहानी - बोध.

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